“तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें “मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे मैं मज़बूत बहुत हूँ लेकिन कोई पत्थर तो नहीं हूँ !! हजारों लोग हैं मगर कोई उस जैसा नहीं है। तन्हाई की https://youtu.be/Lug0ffByUck